“To love or have loved, that is enough. Ask nothing further. There is no other pearl to be found in the dark folds of life.”
"आदि" अन्नत बस तुम ही तो हो..
जहाँ ना अमृत है, ना विष,
ना सुख, ना दुख,
ना स्वर्ग, ना नरक,
वहीं परमानंद है ।
इसी परमानंद तक की यात्रा है तुम्हारी ।
यह यात्रा अन्नत के सानिध्य की है,
यह यात्रा सानिध्य के आनंद की है,
और इस यात्रा में मैं प्रतिपल तुम्हारे साथ हूं ।
मुझे ढूंढो मत,
केवल पहचानो ।
तुम ही मैं हूं,
मैं ही तुम ।
तुम्हारे हर आरंभ का मैं ही अन्त हूं,
और तुम्हारा हर अन्त सदैव मेरा ही आरंभ होगा ।
"आदि" अन्नत बस तुम ही तो हो ।
हर रूप, हर स्वरूप, हर अवतार में,
जो मुझे स्वयं से मिला सके वह तुम ही तो हो,
हर वो अवतार जो मुझे आदि से अन्नत की ओर निश्छलता पूर्वक ले जा सके वह तुम ही तो हो,
जो निश्छल सती को आदी शक्ति में परिवर्तित कर सके,
वह तुम...
तुम अपने हर स्वरूप में पूर्ण हो ।
हृदय के जिस चिन्हित गर्भगृह में तुम स्थापित हो वहां तुम सम्पूर्ण हो ।
आदि और अनंत के बीच की इस यात्रा में निर्वाणरूप से व्यापक ब्रह्म स्वरूपि प्रेम हमारा पथ प्रदर्शक भी है और सहयात्री भी ।
मैं से स्वयं की ओर,
आदि से अनंत की ओर,
हे प्रिय ! तुम ही तो हो.....
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